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और ऊंचा हुआ माउंट एवरेस्ट!

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  विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट जो कि नेपाल में स्थित हैं,की ऊंचाई को चीन और नेपाल द्वारा संयुक्त रुप से फिर से नापा गया और इसकी ऊंचाई पहले से कुछ अधिक पाई गई| मंगलवार को चीन और नेपाल द्वारा संयुक्त रूप से घोषणा की गई कि माउंट एवरेस्ट की संशोधित ऊंचाई 8848.86 मीटर है, जो कि सन 1954 में भारत द्वारा मापी गई ऊंचाई से 86 सेंटीमीटर अधिक है| 2015 में नेपाल में आए भूकंप के बाद लगाई जा रही अटकलों के बाद नेपाल सरकार ने माउंट एवरेस्ट की सटीक ऊंचाई को फिर से नापने का निर्णय लिया था, क्योंकि कहा जा रहा था कि भूकंप के कारण चोटी की ऊंचाई में कुछ बदलाव की गुंजाइश थी| नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप जावली ने काठमांडू ने कहा कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई फिर से मापी गई है और इसकी ऊंचाई 8848.86 मीटर प्राप्त की गई हैं| इससे पहले भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा 1954 में एवरेस्ट की ऊंचाई 8848 मीटर मापी गई थी जो कि नई ऊंचाई से 86 सेंटीमीटर कम थी |खबरों के अनुसार चीन के सर्वेक्षक कौन है 1975 में एवरेस्ट की ऊंचाई 8848.13 मीटर और 2005 में 8844.43 मीटर बताई थी|

कौन सा है दुनिया का सबसे महंगा तरल पदार्थ

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  आपने कभी ना कभी बिच्छू को तो जरूर देखा होगा, या देखा नहीं होगा तो बिच्छू के डंक के बारे में सुना जरूर होगा ! बिच्छू का जहर लगभग 3 करोड़ 90 लाख डॉलर प्रति गैलन या  लगभग 2877544800 ₹  प्रति गैलन ( एक गैलन लगभग 3.785 लीटर के बराबर होता है) की कीमत का है , यह दुनिया का सबसे महंगा तरल पदार्थ हैं|  बिच्छू अपने जहर का इस्तेमाल शिकारियों से बचने तथा अपने शिकार को अपंग करने व मारने में उपयोग करते हैं, लेकिन बिच्छू  की केवल 25 प्रजातियां हैं जिनमें जहर पाया जाता है| आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बिच्छू के जहर में भारी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है जो कि मनुष्य को होने वाले किसी भी तरह के दर्द से निजात दिलाने में सक्षम होता है| कई शोधों से पता चला है कि बिच्छू का जहर हड्डी के नुकसान को रोक सकता है जिससे यह पुराने संधिवात रोगों में जैसे ओस्टियोआर्थराइटिस जैसी स्थितियों में इलाज के लिए एक बहुत ही  उपयोगी पदार्थ बन जाता है| बिच्छू का ज़हर मल्टीपल स्केलेरोसिस (एमएस), सूजन, आंत्र रोग और रुमेटीइड गठिया से पीड़ित लोगों के इलाज मे काम आता है|

नए संसद भवन का मोदी करेंगे शिलान्यास, जाने नए संसद भवन कि कुछ दिलचस्प बातें

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लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कर उन्हें नए संसद भवन के शिलान्यास समारोह में न्योता दिया, इसके बाद उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि "संसद की इमारत नेट पत्थर की नहीं बल्कि 130 करोड़ लोगों की आकांक्षाओं का भवन होगा इसके निर्माण में आने वाले 100 साल की जरूरतों पर ध्यान दिया जा रहा है" गौरतलब है कि 10 दिसंबर दोपहर 1:00 बजे प्रधानमंत्री द्वारा नए संसद भवन का शिलान्यास किया जाएगा इसके साथ ही नए संसद भवन का निर्माण  कार्य भी शुरू हो जाएगा |देश के आजादी के 75 साल यानी सन् 2022 में संसद के दोनों सदनों की बैठकें नये तथा अत्याधुनिक संसद भवन में होंगी और पुराने संसद भवन को देश की धरोहर में शामिल कर लिया जाएगा | नए संसद भवन के बारे में कुछ तथ्य 971 करोड की लागत का अनुमान है,  64500 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला होगा यह भवन,  2020 अक्टूबर तक पूरा बनकर तैयार हो जाएगा नया संसद भवन,  नवंबर-दिसंबर  2022 से दोनों सदनों की बैठकें इसी भवन में होगी,  40 वर्ग मीटर का होगा है सांसद का दफ्तर,  लोकसभा में 888 लोगों के बैठने की जगह होगी,...

क्या समय के साथ फिंगरप्रिंट भी बदल सकते हैं?

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  जैसे जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक उंगलियों के निशान भी बढ़ते जाते हैं लेकिन उनका आकार और तरीका समय के साथ नहीं बदलता अर्थात फिंगरप्रिंट समय के साथ नहीं बदलते हैं| जैसे जैसे व्यक्ति बढ़ता है वैसे फिंगरप्रिंट भी बढ़ते हैं लेकिन फिंगरप्रिंट का पैटर्न नहीं बदलता फिंगरप्रिंट किसी चोट या आघात, जैसे कट लग जाना घर्षण या त्वचा पर एसिड का गिरना अथवा घाव के कारण अथवा किसी बीमारी के कारण कुछ परिस्थितियों में  खो जाते हैं लेकिन खोए हुए फिंगरप्रिंट कुछ महीनों में वापस बढ़ जाएंगे यह फिंगरप्रिंट बदलते नहीं है लेकिन इन्हें  स्कैन करना और प्रिंट लेना कठिन काम हो जाता है क्योंकि घाव के कारण अंग को चोट पहुंचती है, अंग का आकार विघटित हो जाता है हालांकि कुछ बीमारियों में रोग के उपचार के कारण फिंगरप्रिंट धीरे-धीरे विलुप्त हो जाते हैं लेकिन वह वापस उसी आकार में ढल जाते हैं किंतु उन्हें फिर से उसी आकार में प्रिंट रूप में प्राप्त  करना कठिन हो सकता है|  आजकल फिंगरप्रिंट का महत्व बढ़ गया है अपराध जगत में अपराधी को पकड़ना हो, किसी व्यक्ति का पता लगाना हो अथवा...

फरवरी में सिर्फ 28 दिन क्यों होते हैं?

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साल में फरवरी ऐसा महीना है जिसमें सबसे कम 28 दिन होते हैं ओर हर चार सालों में एक बार फरवरी 29 दिन का होता हैफरवरी में 29 का कारण तो हम सब जानते हैं, पृथ्वी पर एक वर्ष 365 1/4  दिनों का होता है परन्तु एक आम साल में 365 दिन ही गिने जाने के कारण, उस एक चौथाई(1/4) दिन कि भरपाई के लिए हर चौथे साल यानि Leap Year में फरवरी को 29 दिन का कर दिया जाता हैं | अब हम जानते हैं कि फरवरी में सिर्फ 28 दिन ही क्यों होते हैं  आज हम जिस कैलेंडर का उपयोग करते हैं वह सबसे पहले रोमन्स द्वारा उपयोग में लाया गया था और इसे सबसे सबसे पहले रोमन्स द्वारा ही बनाया गया था |  सबसे पहले रोमांस ने 10 महीने का कैलेंडर बनाया था जो कि मार्च से लेकर दिसंबर तक रहता था उसमें जनवरी फरवरी नहीं आते थे रोमन्स ने दिमाग लगाकर कुछ महीने 30 तथा कुछ महीने 31 दिनों के कर दिए थे रोमन्स में कैलेंडर में 2 महीने इसलिए छोड़ दिए थे क्योंकि उन 2 महीनों में सर्दियों के कारण कोई कार्य नहीं होता था उनकी यह धारणा थी कि जब इन 2 महीनों में कोई काम नहीं होता तो इन 2 महीनों को कैलेंडर में जोड़ने का क्या फायदा लेकिन कुछ समय बाद ही इनका ...